
गत दिनों भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स कुछ दिन के प्रवास पर अपने पिता डा० दीपक पंड्या के साथ भारत आयीं। वे अपने गांव गयीं, हैदराबाद तथा दिल्ली में अनेक कार्यक्रमों में शामिल हुईं। सोनिया गांधी तथा राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल से भेंट की। उनके सभी कार्यक्रमों को समाचार माध्यमों ने पर्याप्त प्रसिद्धि दी। ठीक भी है, वे न केवल नारी शक्ति के उन्नयन की, अपितु भारतीय प्रतिभा की प्रतीक भी बन गयी हैं।
गुजरात की राजधानी कर्णावती (अमदाबाद) में उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय संस्था रोटरी क्लब के मंच से नगर के प्रबुद्ध नागरिकों को संबोधित किया। इसमें उन्होंने कहा कि उन्हें अंतरिक्ष में जाने के लिए सैनिक जैसे कठोर प्रशिक्षण के साथ तालमेल बिठाने में कोई परेशानी नहीं हुई, चूंकि उनके परिवार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अनुशासित माहौल है। उनके पिता यद्यपि अब अमरीका में ही बस गये हैं; पर एक समय वे संघ में सक्रिय रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अंतरिक्ष में चक्कर लगाते समय भारत और श्रीलंका के मध्य स्थित सेतु के चित्र लिये थे।
उनके इस बयान को गुजरात के समाचार पत्रों ने तो खूब छापा; पर दिल्ली के सेक्यूलर मीडिया ने उसे दबा दिया। पर दिल्ली से छपने वाले अंग्रेजी साप्ताहिक आर्गनाइजर में उसके छपने से भारत के कांग्रेसियों और वामपंथियों में हड़कम्प मच गया है। वे इस पर स्पष्टीकरण देते फिर रहे हैं। उन्होंने अमदाबाद में कार्यक्रम के आयोजक के मुंह से भी कहलवाया कि सुनीता ने संघ या रामसेतु के बारे में ऐसा कुछ नहीं कहा; पर जो बात रिकार्ड में दर्ज हो चुकी है, उसे झुठलाना असंभव है।
जहां तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बात है, तो अनुशासन उसकी एक बड़ी पहचान है। केवल संघ ही नहीं, तो स्वयंसेवक सामाजिक जीवन में जहां भी काम करता है, वहां लोग उस पर सहज ही विश्वास करते हैं, चूंकि उन्हें मालूम होता है कि यह व्यक्ति संघ की प्रक्रिया में से निकल कर आया है। यहां तक कि जो लोग राजनीतिक कारणों से संघ का सार्वजनिक रूप से विरोध करते हैं, वे भी बंद कमरे में उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करने में पीछे नहीं रहते।
संघ के अनुशासन का रहस्य उसके कार्यक्रमों में छिपा है। संघ की शाखा पर जो कार्यक्रम होते हैं, वहां बड़े, छोटे या ऊंच-नीच का भेद नहीं होता। प्राय: शाखा पर कार्यक्रम कराने वाले युवा वर्ग के लोग होते हैं; पर उनकी आज्ञा का पालन उनके पिता की उम्र के लोग भी सहर्ष करते हैं। यदि सरसंघचालक भी किसी शाखा पर जाते हैं, तो वे उस शाखा के मुख्य शिक्षक के आदेश का पालन करते हैं, भले ही वह कक्षा दस का छात्र ही हो।
यही स्थिति संघ के बौद्धिक कार्यक्रमों की है। प्राय: उत्सव या शाखा पर सभी उम्र के लोग होते हैं। उनमें से अनुभवी लोगों को बोलने का अवसर दिया जाता है; पर कभी-कभी प्रशिक्षण के लिए या साहस बढ़ाने और अनुभव लेने के लिए छोटे कार्यकर्ता को भी बोलन या गीत आदि गाने को कहा जाता है। ऐसे समय में वह मंच पर या कुर्सी पर बैठता है और सब बड़े और अनुभवी कार्यकर्ता उसके सामने भूमि पर पंक्तिबद्ध होकर। वे उसकी बात को पूरे मनोयोग से सुनते हैं। बाद में उसकी पीठ थपथपा कर उसका साहस बढ़ाते हैं तथा यदि कहीं भूल हुई हो, तो उसे सुधारते हैं।
सामान्यत: संघ के कार्यक्रमों में सब लोग भूमि पर ही बैठते हैं। हां, जो लोग उम्र या स्वास्थ्य संबंधी परेशानी के कारण धरती पर नहीं बैठ सकते, उनके लिए कुर्सी का प्रबंध कर दिया जाता है; पर इसमें सम्पन्नता या किसी विशेष वर्ग के आधार पर भेद नहीं किया जाता।
इसी प्रकार संघ के शिविर में होता है। वहां सब नीचे सोते हैं। सब अपना बिस्तर और दैनिक आवश्यकता का सामान साथ लाते हैं। एक साथ रहना, खाना, खेलना और कार्यक्रमों में भाग लेने से समता और समानता से भी आगे समरसता की भावना सबके दिल में बस जाती है। इसी लिए संघ के स्वयंसेवक खानपान या शादी विवाह में जाति बंधनों से मुक्त रहते हैं।
ऐसे शिविर में भोजन सब लोग धरती पर पंक्ति में बैठ कर करते हैं। सामान्य स्वयंसेवक हो या बड़ा अधिकारी, सब वहीं बैठकर एक जैसा भोजन करते हैं। वितरण का काम भी शिविरार्थी स्वयंसेवक ही अपनी बारी आने पर करते हैं। इसमें भी जाति, वर्ग या क्षेत्र का बंधन नहीं होता। हां, उम्र या स्वास्थ्य के चलते कुछ लोगों के लिए विशेष प्रबंध होता है, यह अलग बात है।
संघ के अनुशासन के साथ ही उसकी देशभक्ति की भी अलग ही छवि है। इसी के चलते नेहरू जी ने संघ के स्वयंसेवकों को गणतंत्र दिवस की परेड में आमन्त्रित किया था और लाल बहादुर शास्त्री ने भारत-पाक युद्ध के समय सरसंघचालक श्री गोलवलकर को बुलाकर परामर्श किया था। एक बार संजय गांधी ने भी युवा कांग्रेस की शाखा संघ की तर्ज पर लगाने का प्रयास किया था; पर नकल कभी असल नहीं हो सकती, इसलिए उनका यह प्रयोग औंधे मुंह गिर गया।
देशभक्ति के संस्कार भी शाखा के खेल, दंड, नियुद्ध, आसन, व्यायाम आदि शारीरिक कार्यक्रम तथा गीत, बोधकथा, सुभाषित, अमृत वचन, बौद्धिक आदि वैचारिक कार्यक्रमों में से प्राप्त होते हैं। इसी अनुशासनप्रियता और देशभक्ति के कारण संघ आज विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बना है। वह शासन से कोई सहायता नहीं लेता और राजनीति में भाग नहीं लेता। प्राय: सत्ता का उसे विरोध ही सहना पड़ा है, फिर भी वह सबसे आगे है।
जो लोग आज संघ का या सुनीता के बयानों का विरोध कर रहे हैं, उन्हें चाहिए कि वे संघ की कार्यशैली का अध्ययन करें। विरोध करने से संघ बढ़ेगा ही, घटेगा नहीं।
विजय कुमार
सह संपादक, राष्ट्रधर्म